परंपरा को जिंदा रखने के लिए गौतमपुरा में हिंगोट बनाने में लगे योद्धा

गौतमपुरा: मध्यप्रदेश इंदौर जिले के गौतमपुरा गाँव में एक ऐसी परंपरा है जो जानलेवा साबित होती है। गौतमपुरा में वर्षो से हिंगोट युद्ध खेला जाता है। यहां एक दूसरे पर आग के गोले बरसाए जाते हैं। इसमें कई लोग घायल होते हैं, यहां तक कि मौत भी हो सकती है। दीपावली के दूसरे दिन पड़वा पर होने वाले हिंगोट युद्ध की तैयारी चालू हो गई है। हिंगोट मैदान में उतरने वाले योद्धा हिंगोट बनाने में जुट चुके हैं। प्रतिवर्ष होने वाला हिंगोट युद्ध कोरोना महामारी के चलते पिछले दो वर्षों से रुका हुआ था


हिंगोट युद्ध
हिंगोट युद्ध । फोटो गूगल


कैसे बनता है हिंगोट ?

हिंगोरिया नामक का पेड़ जंगल में पाया जाता है। हिंगोट बनाने के लिए इसके ऊपर से आर पार छेद कर अंदर से इसका मटेरियल बाहर निकाल लिया जाता है। फिर फल के अंदर एक आर पार छेद कर दिया जाता है उस छेद में  बारूद भरकर छेद को पीली मिट्टी से बंद या अच्छी तरह से पैक कर दिया जाता है । हिंगोट का निशाना सही दिशा में जाए इसके लिए इसमें 8 इंची कि बांस की डंडी बांध दी जाती है । इस प्रकार अग्निबाण (हिंगोट) तैयार हो जाता है ।

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महिलाये भी करती है हिंगोट बनाने में मदद

गौतमपुरा के बड़े बुजुर्ग बतातें हैं कि इस युद्ध का बहुत प्राचीन महत्व है। यहा के लोग बताते है कि यह परंपरा ठेठ से (यानी बाप दादाओं के ज़माने से) चली आ रही है। इस वजह से लोग आज इस परंपरा को निभाते हैं।" हिंगोट को युद्ध में लड़ाई करने के साथ साथ इसे बना कर थोड़ी बहुत कमाई हो सके इस लिए इसे ज्यादा मात्र में बनाया जाता है जिसे बनाने में घर कि महिला एवं बुजुर्ग भी करते है मदद हिंगोट बनाने की कला सिर्फ स्थानीय योद्धा जानते हैं।


हिंगोट
हिंगोट बनाती सोहनी बाई। फोटो गूगल


गौतमपुरा से हिंगोट कैसे खरीदें ? How to buy hingot from gautampura?

हिंगोट युद्ध को देखने बिना प्रचार प्रसार के भी हजारों दर्शक हिंगोट युद्ध देखने गौतमपुरा हिंगोट मैदान पहुंचते हैं। हिंगोट मैदान पर तुर्रा दल व कलंगी दल के बीच अग्निबाण युद्ध होता है। ऐसे में जो लोग दूर से आते है उन्हें भी हिंगोट को चलाने कि लालसा होती है हिंगोट कैसे खरीदें कि हम भी हिंगोट को खरीद कर घर ले जाए और चला सके इस लिए हम आपको बता दे हिंगोट खरीदने के लिए कोई दुकान अलग से नही लगती है। आपको गौतमपुरा के किसी भी सदस्य से पूछना पड़ेगा कि हिंगोट कहा मील सकता है जो योद्धा मैदान में उतरते है उनके घर संभवता मील जाते है ।

तुर्रा दल व कलंगी दल के बीच अग्निबाण युद्ध होता है।

तुर्रा दल व कलंगी दल दोनों दल में 40 से 50 योद्धा आमने-सामने होते हैं। युद्ध लड़ने वाले योद्धा ढोल ढमाकों के साथ जुलूस के रूप मैं पास में बने भगवान देवनारायण मंदिर पहुंचते हैं। वह दर्शन के बाद लगभग 5 बजे मैदान पर सभी योद्धा पहुंचते हैं व संकेत मिलते ही रॉकेट की तरह चलने वाले हिंगोट से एक दूसरे पर बरसाना शुरू कर देते हैं। लगभग डेढ़ घंटे चलने वाला युद्ध बिना किसी कि हार जीत के समाप्त हो जाता है।

परंपरा को जिंदा रखने के लिए लड़ते हैं हिंगोट युद्ध

गौतमपुरा और रुणजी के लोग अपनी संस्कृति व परंपरा को इस आधुनिक युग में भी जान की परवाह किए बिना जिंदा रखे हुए हैं। एक बार फिर सालों से चले आ रहे हिंगोट युद्ध के लिए योद्धा अग्निबाण से अपने तरकश भरने में लगे हैं। अग्निबाण का तांडव क्यों और किन परिस्थितियों में शुरू हुआ और इस खेल की उपज कहां से हुई यह प्रश्न आज भी पहली बना हुआ है । बुजुर्गों का कहना है कि उन्होंने जब से होश संभाला है तबसे हिंगोट युद्ध देखते आ रहे हैं । हिंगोट बनाने की कला सिर्फ स्थानीय योद्धा जानते हैं। इसे बनाने की कोई विशेष ट्रेनिंग नहीं दी जाती।